Friday, December 2, 2011

फिर क्यों


तुम नही हो, फिर क्यों तुम्हारा इन्तजार है,

अकेला हूँ फिर क्यों, सुबह-शाम तुम्हारे होने का एहसास है ,

तपा हूँ सूरज कि गर्मी में बहुत, सिसका भी हूँ ओस भरी रातों में,

फिर क्यों रमी हो अंतर्मन में मेरे ,

कई बार अकेला सहमा गुजरां हूँ मोड़ो से,

जहाँ से देखा है अपने सुने घरौंदे को,

उसके दरवाजों को अब भी है इन्तजार ,

तुम्हारे पैरों कि थापों का,

खिड़कियाँ अधीर है, खुलने को तुम संग छू कर जाने वाली हवाओं से ,

फिर क्यों दरकने लगी दीवारें इसकी ,

आज भी जिक्र है तुम्हारा घर के आँगन में,

माँ पूछती है कैसी है वो,

शुन्यता में टकटकी लगाये… निरुत्तर सा रहता हूँ मै,

फिर क्यों छू जाती हो तुम हवा के झोके सी,

हाँ साथ में याद है मुझे तुम्हारा

उन छोटी छोटी बातों पर रूठना, था नही

जिनका सम्बन्ध मुझसे कोई,

फिर मेरा अध्-खुले मुंह से बुदबुदाना ,

और देख कर मेरी भीगी पलकें ,

तुम्हारा कुछ हौले से मुस्काना ,

जिवन्त कर चुके हैं ऐसे कई पल मुझको ,

जिंदगी लेती है क्यों फिर करवटें बार बार,

मेरे शब्दों को, उन दरवाजों , और घर के आँगन को,

अब भी इन्तजार है तुम्हारा,

काश धुंधला ही सही सच हो जाता वो एहसास तुम्हारा ..........

Monday, October 10, 2011


एक अनजाने भय से,

अक्सर मै सहमा रहता हूँ ,

कहीं अकेला न पड़ जाऊ,

इसलिय यादों की नीवं को ,

मजबूत बनाने की कोशिश करता हूँ,

ये मानकर चलता हूँ ,

कोशिश में तुम भी बराबर हो , मेरे साथ,

साथ चलोगी, जानता हूँ , बहुत ज्यादा न सही ,

पर कुछ तो , वही बहुत है मेरे लिय,

किस मोड़ पर छोड़ दोगी साथ मेरा, नही जानता ,

पर रास्ते तो मोड़ के आगे भी हैं,

कैसे चल पाऊंगा, तुम्हारे बिना,

चाहता हूँ,

इसलिय तुमसे कुछ पल, कुछ निशानियाँ, कुछ यादें,

और कुछ यादों को याद करने वाली सजीवता ,

ताकि रात में किसी तारे को देख कर नम ना हो जाएँ आँखे मेरी

तुम्हारी यादें, निशानियाँ .....

अवलम्बन होगीं, मेरे लिय

मोड़ के आगे के रास्तों की मंजिल होगी .....

इसलिय दे दो कुछ पल, कुछ निशानियाँ, कुछ यादें.....

Monday, August 29, 2011


समय का क्या है वो तो कृष्ण कि तरह छलिया है

कभी धूप तो कभी साया घना है,

तुम कहते हो जरा ठहरो राह में,

विश्राम करो इस छाव में,

पर सोचो……

उस धूल भरी पगडंडी के उसपार मेरा घरौंदा है,

वो भी तो इस गतिशील समय की लीला है,

न सोचा था की कभी घिर जायेंगे बादल उदासी के,

और न रहेंगे तथ्य कोई गुज़ारिश के,

हर मोड़ महाभारत सा लगता है,

हर कदम पर पार्थ को तलाशता है,

समय का क्या है वो तो कृष्ण कि तरह छलिया है,

Monday, March 21, 2011

अकेलापन




लिखा करो, अच्छा लगता है, तुमने कहा.....

पर क्या लिखूं.....

तुम्हारे किसी भी स्याह दिन से

ज्यादा उदास हूँ मै आज.....

तुम अल्हड नदी की तरह

मुझ सीपी 'जिसकी मोती हो तुम' को

बहा लायी बहुत दूर अपने साथ,

पर अकेला हूँ आज किनारे संग.....

सब रंग तो है इस मौसम में

फिर भी मन की दीवारें धुंदली क्यों हैं.....

कुछ जानी अनजानी गलतियाँ

बना गयी दूरियां क्यूँ .....

कपोलें तो प्रेम की रहीं फूटती हर पल

पर जाने पतझड़ में क्यूँ उलाझा मन.....

महसूस किया मन ने हर बेचैनी को

शायद न दे पाया आकार शब्दों का.....

पर उम्मीदें है मुझको भी

आज नही तो कल, इस पल नही तो उस पल

तुम फिर मुझे बहा लोगी, भर दोगी हर रंग

मेरे इस जीवन

मेरे इस जीवन में.....

Tuesday, February 22, 2011

वजह



हर मोड़ पर कदम रुक जातें हैं ,

हर मोड़ सवाल सा लगता है ,

क्या करूं बार बार दिल ये पूछता है

मुस्कुराने की वजह खुद से तलाश करता है,

किसी से कुछ कह भी नही पाता ,

हर बात सुन लेने की वजह  सोचता है ..............

Thursday, February 17, 2011

हम



तुम्हारे विचारों का प्रारंभ हूँ ,

               हर धड़कन की प्रतिध्वनि हूँ मै,

दिन के उजाले में साया हूँ

               अंधेरों में तुम्हारा हिस्सा हूँ मै,

गुस्से में छिपी मिठास हूँ

             तुम्हारे पलकों का प्यार हूँ मै,

बीते समय के सुखद सलवटें हूँ

              यादों को सजीव करने वाली मंजरी हूँ मै,

रात की लोरी हूँ

             नींद में तुम्हारा सपना हूँ मै,

अनमोल पलों की मूर्त सीपी हूँ

              गिरते हुए कदमो को संभालने का बल हूँ मै,

भोर की पहली किरण हूँ मै

               तुम्हारे लिय निशा की असीम शांति हूँ मै,

अकेला नही यह 'मै'

             सारांश 'हम' का है ,

इसलिय तुम्हारे विचारों का प्रारंभ हूँ मै................
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