Monday, February 6, 2012

मेरा मन


बात एक रूठे दिन की है

सूरज बादलों संग मिल मुझसे,आँख मिचौली कर रहा था,

तभी लगा की एक अजनबी भी मेरे अन्दर रहता है,

ध्यान से देखा तो पाया की साया मेरा साथ दे रहा है,

अचानक ही खुद से खुद की मुलाकात हो गयी,

मन में सवालों की उफान था, तो आँखों में निर्जीवता का पीलापन


उसने पूछा जानते हो मुझे,


संकोच भरी मुस्कराहट के साथ मैंने कहा नही,


बहुत जल्दी भूला दिया मुझको, अपने बसाए घरौंदे को

....
आवाज़ जानी-पहचानी थी, समझा तो पाया अपने मन को,


उसने पूछा ..

.....
जिसकी खिड़की से आने वाली शीतल हवाएं तुमको आनंदित करती थी,


दरवाजों पर आने वाले पैरों की थाप तुमको प्रेमग्न करती थी ,


तुमने भूला दिया सब बातों को, मर्यादाओं को


क्या मोड़ो के सामने तुम मुझे सूना छोड़ चले जाओगे,


या फिर संचय करोगे अनमोल यादों को


मै इन्तजार में हूँ तुम्हारे जबाव के,


उसने कहा मुझसे...

.
मुस्कान अधरों पर थी मेरी ...बात तो पूरे जीवन की थी


बस मैंने कहा रहना मेरे भीतर बनकर प्रेम मेरा, घरौंदा मेरा .......


शायद तुम मुझको जान ना पाए, पर अब जानो .

...
और रहो भीतर बन के अपनापन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,