''सुबह की अलसाई पलकों में,
कुछ अलसाये से ख्वाब छिपे है...
अधमुंदी नींद में तुम्हारा कुछ शेष छिपा है,
और छिपा है तुम्हारा,
सिली हवा सी मुझे छू जाना...
भोर की पहली किरण में,
जब तुम धुंधले सपने सी ओझिल होती हो...
बिखरे ख़्वाबों में,
मै तुम्हारे आने की बाट जोहता हूँ...
बिखरे शब्दों को जोड़कर,
मन के दोहरेपन को खुद की,
पलकों में समेट लेता हूँ...
सुबह की अलसाई पलकों में,
कुछ अलसाये से ख्वाब छिपे है''
कुछ अलसाये से ख्वाब छिपे है...
अधमुंदी नींद में तुम्हारा कुछ शेष छिपा है,
और छिपा है तुम्हारा,
सिली हवा सी मुझे छू जाना...
भोर की पहली किरण में,
जब तुम धुंधले सपने सी ओझिल होती हो...
बिखरे ख़्वाबों में,
मै तुम्हारे आने की बाट जोहता हूँ...
बिखरे शब्दों को जोड़कर,
मन के दोहरेपन को खुद की,
पलकों में समेट लेता हूँ...
सुबह की अलसाई पलकों में,
कुछ अलसाये से ख्वाब छिपे है''