समय का क्या है वो तो कृष्ण कि तरह छलिया है
कभी धूप तो कभी साया घना है,
तुम कहते हो जरा ठहरो राह में,
विश्राम करो इस छाव में,
पर सोचो……
उस धूल भरी पगडंडी के उसपार मेरा घरौंदा है,
वो भी तो इस गतिशील समय की लीला है,
न सोचा था की कभी घिर जायेंगे बादल उदासी के,
और न रहेंगे तथ्य कोई गुज़ारिश के,
हर मोड़ महाभारत सा लगता है,
हर कदम पर पार्थ को तलाशता है,
समय का क्या है वो तो कृष्ण कि तरह छलिया है,