Monday, December 6, 2010

मन के भाव






तुमको रोते देखा तुमको हँसते पाया,



निश्छल से  भाव देखे मन का गुरु मंथन देखा,

कभी थोड़ा सरल पाया कभी सवालों की काया में लिपटे पाया,



तुमको रोते देखा तुमको हँसते पाया,



राहों में सुकून में पाया मोड़ो पर बेचैन पाया,

मन की लहरों को शब्दों में देखा आँखों में छिपी गहराई  को पाया ,



तुमको रोते देखा तुमको हँसते पाया,



कभी चट्टान सा पाया तो कभी मोम सा पिघला पाया,
मै खुद अबुझ पहेली हूँ  पर क्या तुम मुझसे भी ज्यादा ,
ये मै खुद अभी जान न पाया ,



तुमको रोते देखा तुमको हँसते पाया,

Saturday, November 27, 2010

यूँ देखना तुम्हारा....



मै कहता हूँ , ऐसे मुझे मत देखो ,

                तुम कहती हो क्यों ,

क्या पहले कभी किसी ने नही देखा ,

                मै नजरें फेर लेता हूँ , सोचता हूँ ,

क्यों देखती हो तुम मुझे ऐसे ,

              प्यार दोस्ती आकर्षण किस रूप में देखती हो ,

तुम्हारी नजरें घरौंदा न बना ले , मेरे मन में ,

              डर जाता हूँ , तुम जानती हो न ,

घरौंदे बहुत अरमानो से बनते हैं , कई बने भी हैं , दोस्ती के,

               इन घरौदों का क्या , एक बार बन गए तो,

बस पूरी जिंदगी साथ निभाते हैं ,

              धूप- छावं की तरह ,

बहुत गहरी पैठ होती है , दोस्त यादो घरौंदों की ,

              इतनी बातें, यादें लेकर चलता हूँ कि,

समुद्र सा लगने लगता है यह घरौंदा,

                 सहम जाता  हूँ, कहीं मंथन न हो जाये ,

तिनको के समान , ओस कि बूंदों के समान ,

                  उड़  ना जाये, बिखर न जाये

फिर तुम्हारी यादें  भी तो हैं , मेरे साथ ,

               नही खोना चाहता हूँ , उन्हें ,

वो बिन कहे, बिन सुने, गुजरे पल

                 ये मात्र मै जानता हूँ

मैंने उन पलों को जिया,

                उन पलों ने कब घरौंदा बनाया, नही जानता

लेकिन घरौंदा बना जरुर , मेरे मन में

                  इस लिए कहता हूँ , डरता हूँ  ऐसे मुझे मत देखो ...........