मै कहता हूँ , ऐसे मुझे मत देखो ,
तुम कहती हो क्यों ,
क्या पहले कभी किसी ने नही देखा ,
मै नजरें फेर लेता हूँ , सोचता हूँ ,
क्यों देखती हो तुम मुझे ऐसे ,
प्यार दोस्ती आकर्षण किस रूप में देखती हो ,
तुम्हारी नजरें घरौंदा न बना ले , मेरे मन में ,
डर जाता हूँ , तुम जानती हो न ,
घरौंदे बहुत अरमानो से बनते हैं , कई बने भी हैं , दोस्ती के,
इन घरौदों का क्या , एक बार बन गए तो,
बस पूरी जिंदगी साथ निभाते हैं ,
धूप- छावं की तरह ,
बहुत गहरी पैठ होती है , दोस्त यादो घरौंदों की ,
इतनी बातें, यादें लेकर चलता हूँ कि,
समुद्र सा लगने लगता है यह घरौंदा,
सहम जाता हूँ, कहीं मंथन न हो जाये ,
तिनको के समान , ओस कि बूंदों के समान ,
उड़ ना जाये, बिखर न जाये
फिर तुम्हारी यादें भी तो हैं , मेरे साथ ,
नही खोना चाहता हूँ , उन्हें ,
वो बिन कहे, बिन सुने, गुजरे पल
ये मात्र मै जानता हूँ
मैंने उन पलों को जिया,
उन पलों ने कब घरौंदा बनाया, नही जानता
लेकिन घरौंदा बना जरुर , मेरे मन में
इस लिए कहता हूँ , डरता हूँ ऐसे मुझे मत देखो ...........