Sunday, July 26, 2015

"अरविन्द, काश तुम फिर मिल जाते"

कुछ वर्षों पहले जब तुम जेहन मे थे तो एक ईमानदार, विश्वसनीय और परिवर्तन को स्थायी बनाने की तुम्हारी तस्वीर थी --- तुम सहज उपलब्ध थे, एक आम आदमी की तरह --- तुम लोगों की आवाज उठाते थे, आवाज में कोई छोटा, बड़ा नही था --- सभी को तुमने हमाम मे खड़ा किया था --- परिवर्तन का चेहरा बनकर आम चुनाव में उतरे, तुम सफल भी हुए --- लोगों ने तुम पर विश्वास किया और अप्रत्याशित रूप से तुम्हे 28 सीटें मिली --- थोड़े दिनों की तुम्हारी सरकार रही, मात्र 49 दिनों की --- ईमानदार, विश्वसनीय और आम लोगों की सरकार,'आप' की सरकार --- समय बदला, पार्टी का तुमने विस्तार किया, लेकिन उससे पहले तुमने खुद को बदला --- ईमानदार, विश्वसनीय और आम आदमी के चेहरे को तुमने हटाया --- मझे राजनीतिज्ञ की तरह , तुमने खुद को तैयार किया --- ठीक उसी तरह से जैसा साढ़े छह दशक में भारतीय राजनीति के राजनेता थे --- तुमको पता था की लोकतंत्र  कमजोरी क्या है --- तुमने सस्ती लोकप्रियता की राह पकड़ी --- सस्ते वादे, बिकाऊ सपने , आधारहीन तथ्य, झूठे आरोप, खुदरी बातें, दोहरे चरित्र के लोग और भी न जाने क्या क्या --- तुमने सब कुछ किया और उसको अपने व्यक्तित्व में शामिल किया --- बिजली, पानी, मुआवजा, वाई फाई, दाल-सब्जी, इलाज, सुरक्षा और भी बहुत कुछ तुम बोल गए देने के लिए --- लोकतंत्र की कमजोरी को तुमने खूब कैश किया --- तुम सफल भी हुए, लोकतंत्र के इतिहास मे तुमने स्वर्णिम जीत दर्ज की --- 67 सीटों के साथ तुमने इतिहास रचा --- और फिर बीतते समय के साथ तुमने अपने नए रूप में व्यवहार करना शुरू कर दिया --- हर बात पर विरोध, हर बात पर आरोप, अपनी गलतियों को दूसरों पर डालना और नाकामी को भविष्य के झोले में डालना --- तुमने कभी सोचा है की तुममे और एक आम राजनेता में क्या अंतर है --- कितना विश्वास था लोगों का तुम पर और तुम्हारे 'आप' के दूसरे नेताओं  पर --- तुम्हारे अपने लोग मोटी पगार लेते है, कभी आम आदमी की पगार इतनी देखी है --- तुम ने सोचा है कभी की दिल्ली की हालत क्या हो गई है --- तुम प्रचार पर पैसा बहा रहे हो, तुम बदले की राजनीतिक दलदल मे खुद को उतार दिया है --- लेकिन तुम्हारा क्या, फिर आरोप लगा दो --- ग़रीबों का पैसा बताते हो, पर खर्च तुम और तुम्हारे नेता करते है --- तुम ऐसा मुखौटा लगा कर काम कर रहे हो जो, आने वाली पीढ़ियों को लाचार और अपंगता की ओर भेज रहे है --- तुम्हे अच्छी तरह से मालूम है की हर परिवर्तन को स्थायी बनाने की कीमत होती है --- राजनीति को भी परिवर्तन की नींव मे जाना होता है, तभी विकास की राजनीति का स्थायी परिवर्तन संभव है --- तभी मुझे और मेरे साथ दूसरे आम लोगों को भी आपसे उम्मीद थी और शायद अब भी है, धूमिल होती ही सही --- काश 'अरविन्द' तुम फिर मिल जाते --- पर तुम सत्ता के गलियारों में, राजसुख के अहंकार में, आरोप की राजनीति में एक परिपक्व राजनेता से बहुत आगे निकल चुके हो, जहां से तुम्हारा वापस आना मुश्किल सा है.  


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